मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा

श्रीशैल पर्वत पर श्रीमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग हैं, जिसे दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है।

क्या आप जानते हैं?

महाभारत के अनुसार श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव की पूजा करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है।

कुछ ग्रंथों में लिखा है कि श्रीशैल के शिखर के दर्शन से ही दर्शकों के सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं, उन्हें अनन्त सुखों की प्राप्ति होती है और आवागमन के चक्कर से मुक्ति मिलती है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग शिवपुराण की कोटि रुद्र संहिता के अनुसार यह भगवान शिव का दूसरा ज्योतिर्लिंग है।

शिवपुराण में वर्णित कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव और माता पार्वती के मन में यह विचार आया कि उन्हें अब अपने दोनों पुत्रों का विवाह कर देना चाहिए।

किन्तु वे दोनों यह निर्णय नहीं कर पा रहे थे कि पहले गणेश का विवाह कराएं या फिर कार्तिकेय की।

फिर उन्होंने दोनों पुत्र गणेश और कार्तिकेय जी को अपने पास बुलाया और उनसे बोले ।

हे वत्स! तुम दोनों में से जो भी सबसे जल्दी सम्पूर्ण धरती का चक्कर लगाकर आएगा उसका विवाह पहले होगा।

यह सुन कार्तिकेय अपने मोर पर सवार होकर तुरंत धरती का चक्कर लगाने निकल पड़े पर भगवान गणेश ने सोचा की मेरी सवारी तो मूषक है।

अगर मैं संपूर्ण धरती का चक्कर लगाने निकल पड़ा तो मुझे कई वर्ष लग जाएंगे।

फिर उन्होंने बुद्धि लगाई और अपनी माता पार्वती और पिता शिव के चारों ओर एक चक्कर लगा लिया।

यह देख जब उनसे माता पार्वती ने पूछा कि वत्स यह तुमने क्या किया तो गणेशजी ने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा माते मेरे लिए तो मेरे माता पिता ही संसार हैं। इसलिए मैंने आप दोनों का चक्कर लगा लिया।

यह सुन माता पार्वती और भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने गणेशजी का विवाह विश्वरूपम की दोनों बेटियों रिद्धि और सिद्धि से करवा दिया।

उधर जब कार्तिकेय भ्रमण कर वापस आए तो गणेश जी के विवाह के बारे में पता चला जिससे कार्तिकेय को बहुत बुरा लगा और उन्होंने निर्णय किया कि वह कभी विवाह नहीं करेंगे और फिर वे क्रौंच पर्वत पर चले गए।

बाद में माता पार्वती और भगवान शिव के वहां जाकर अनुरोध करने पर भी वह नहीं लौटे और वहां से बाहर कुछ दूर चले गए।

तब शिव और माता पार्वती ज्योतिर्मय स्वरूप धारणकर वह प्रतिष्ठित हो गए।

उस दिन से भगवान शिव का मल्लिकार्जुन नामक यह तीनों लोकों में प्रसिद्ध हो गया।

इस लिंग के नाम में मल्लिका का अर्थ है देवी पार्वती और अर्जुन का अर्थ है भगवान शिव। और ऐसा माना जाता है कि अमावस्या के दिन भगवान शिव और पूर्णिमा के दिन माता पार्वती अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने यहां स्वयं आती हैं।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कहां पर है?

वर्तमान में भगवान शिव का यह ज्योतिर्लिंग आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के तट के पास श्रीशैलम पर्वत पर स्थित है ।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *