महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा

श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह लिंगम (स्वयं से पैदा हुआ) माना जाता है जो स्वयं के भीतर से शक्ति (शक्ति) को प्राप्त करने के लिए है।

श्री महाकालेश्वर की मूर्ति दक्षिणमुखी होने के कारण इसे दक्षिणामूर्ति माना जाता है।

जिन पर महाकाल की कृपा हो जाए, उसका काल भी नहीं बिगाड़ सकता है। ऐसी मान्यता है, महाकालेश्वर महादेव के दर्शन से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा

श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग शिवपुराण की कोटि रुद्र सहिता में वर्णित कथा के अनुसार उज्जैन यानी उज्जैन नगर में राजा चन्द्रसेन का राज हुआ करता था।

राजा चंद्रसेन भगवान शिव के परम भक्त थे।

शिव पार्षदों में प्रधान मणिभद्र नामक गण उनका सखा हुआ करता था। एक बार मणिभद्र ने राजा चन्द्रसेन पर प्रसन्न होकर उन्हें एक तेजोमय चिंतामणि नामक महा मणि भेंट में दी।

राजा चंद्रसेन ने उस दिव्य मणि को उसी क्षण अपने गले में धारण कर लिया, जिसके बाद उसका प्रभामंडल दैदीप्यमान हो गया और जैसे जैसे समय बीता दूसरे देशों में उसकी यश कीर्ति बढ़ने लगी।

यह बात जब दूसरे देशों के राजा को पता चली कि चंद्र के पास कोई देवी मणि है तो वे सभी मणि पाने का प्रयास करने लगे।

कुछ राजाओं ने तो खुद जाकर राजा चंद्रसेन से वह मणि देने की विनती की किन्तु वह राजा की अत्यंत प्रिय वस्तु थी।

अतः राजा चंद्रसेन ने वह मणि किसी को नहीं दी और फिर अंत में मणि पाने की लालसा में कुछ राजाओं ने उज्जैनी नगर पर आक्रमण कर दिया।

उज्जैनी नगर पर आक्रमण हुआ देख शिव भक्त चंद्रसेन भगवान महाकाल की शरण में जाकर उनकी आराधना करने लगे।

उसी समय गोपी नाम की महिला अपने छोटे बालक को साथ लेकर दर्शन हेतु वहां आई। उस बालक की उम्र पाँच वर्ष थी और गोपी विधवा थी।

राजा चंद्रसेन को ध्यानमग्न देखकर उस बालक के मन में भी शिव की पूजा करने का विचार आया।

फिर घर आकर वह बालक कहीं से एक पत्थर ले आया और अपने घर के एकांत स्थल में बैठकर भक्तिभाव से उसकी पूजा शिवलिंग के रूप में करने लगा।

कुछ देर पश्चात जब उसकी माता ने भोजन के लिए उसे बुलाया तो वह नहीं गया।

तब उसकी माता स्वयं उसी स्थान पर आई जहां वह बालक ध्यानमग्न बैठा था। वहां भी उसकी माता ने उसे पुकारा किन्तु बालक ध्यान से नहीं जगा।

उसकी माता क्रोधित हो उठी और उसने उस बालक को पीटना शुरू कर दिया और समस्त पूजा सामग्री उठाकर फेंक दी।

उधर जब बालक चेतना में आया तो उसने अपनी पूजा को नष्ट देखकर बहुत दुख हुआ और वह देव देव महादेव करता हुआ वहीं मूर्छित हो गया।

जब वह होश में आया तो उसने देखा कि भगवान शिव की कृपा से वहां एक सुन्दर मंदिर निर्मित हो गया।

मंदिर के मध्य में दिव्य शिवलिंग विराजमान था एवं पूजा की सारी सामग्री भी यथावत रखी हुई थी।

उधर जब उसकी माता को यह पता चला कि उसके बालक के कारण यह सब चमत्कार हुआ है तो वह आश्चर्यचकित हो गई और खुद को कोसने लगी।

फिर राजा चंद्रसेन को इस घटना की जानकारी मिली तो वह भी उस शिव भक्त बालक से मिलने पहुंचे।

उसके बाद देखते ही देखते वे सभी राजा भी उस बालक से मिलने पहुंचे जो राजा चंद्रसेन से मणि हेतु युद्ध करने पर उतारू थे और तभी से भगवान महाकाल उज्जैनी में स्वयं ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग कहां है?

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित है।

श्री महाकालेश्वर मंदिर विवरण

महाकाल मंदिर के गर्भगृह में ओंकारेश्वर शिव की मूर्ति स्थापित है।

गर्भगृह के पश्चिम, उत्तर और पूर्व में गणेश, पार्वती और कार्तिकेय के चित्र हैं।

दक्षिण में नंदी की प्रतिमा है। तीसरी मंजिल पर नागचंद्रेश्वर की मूर्ति केवल नागपंचमी के दिन दर्शन के लिए खुली होती है।

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