सोलह सोमवार व्रत, जिसे सोलह सोमवार उपवास भी कहा जाता है, हिंदुओं द्वारा सोमवार के सिर्फ सोलह सप्ताहों में नियमित रूप से व्रत रखा जाता है। इस उपवास को भगवान शिव को समर्पित किया जाता है और इसे व्रत रखने से संतोष, समृद्धि, खुशी और इच्छाओं की पूर्ति होती है।
सोलह सोमवार व्रत का महत्व
सोलह सोमवार व्रत हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण और शुभ रीति में से एक माना जाता है। इसे अपनाकर भक्त परेशानियों से मुक्त होते हैं और अपने लक्ष्य प्राप्त करते हैं।
सोलह सोमवार व्रत के की उत्पत्ति पीछे की पौराणिक कहानी
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी पार्वती ने सोलह सोमवार व्रत का पालन करके भगवान शिव का प्यार और स्नेह प्राप्त किया। भगवान शिव उनके भक्ति से प्रसन्न हो गए और उन्हें अपने प्यार और स्नेह से आशीर्वाद दिया।
सोलह सोमवार व्रत की तैयारी
भक्तों को श्रावण या कार्तिक हिंदू महीने के पहले सोमवार से सोलह सोमवार व्रत शुरू करना चाहिए। वे सुबह जल्दी उठें, नहाएँ और साफ कपड़े पहनें।
सोलह सोमवार व्रत के नियम
उपवास के दौरान, भक्तों को एक दिन में केवल एक भोजन लेना चाहिए, जो सात्विक (शुद्ध) खाद्य होना चाहिए। उन्हें मांसाहारी भोजन, शराब और तंबाकू से बचना चाहिए। वे नकारात्मक विचारों या क्रियाओं में अंधविश्वास का समर्थन नहीं करना चाहिए।
सोलह सोमवार व्रत का पालन करने की प्रक्रिया
भक्तों को शिव मंदिर में जाना चाहिए और भगवान शिव को पूजा करनी चाहिए। वे सोलह सोमवार व्रत पूजा करनी चाहिए और सोलह सोमवार व्रत कथा का पाठ करना चाहिए। उन्हें भगवान शिव को फल, फूल और अन्य वस्तुओं की भेंट भी देनी चाहिए।
सोलह सोमवार व्रत कथा – Solah Somvar Vrat Katha in Hindi
एक बार भगवान शिव और पार्वती मृत्युलोक की अमरावती नगर में घूमने गए थे। वहां के राजा ने भगवान शिव के लिए एक विशाल मंदिर बनवाया था जहां भगवान शिव और पार्वती जी रहने लगे।
एक दिन पार्वती जी ने भगवान शिव से कहा कि वह चौसर खेलना चाहती है। शिव ने उसकी इच्छा पूरी की और दोनों चौसर खेलने लगे। खेल शुरू होते ही मंदिर का पुजारी वहां पहुँच गया। पार्वती जी ने पुजारी से पूछा कि बताइए कि इस बाज़ी में किसकी जीत होगी?
पुजारी ने कहा कि महादेव जी की |
उस दिन माता पार्वती जी ने चौसर में जीत हासिल की थी जबकि महादेव जी हार गए थे। लेकिन ब्राह्मण ने उस समय झूठ बोला था कि महादेव जी ने जीत हासिल की थीं। इससे नाराज होकर माता पार्वती जी ने उसे कोढ़ी होने का श्राप दे दिया। शिव और पार्वती जी ने मंदिर से लौट कर कैलाश पर्वत पर जाना शुरू कर दिया।
पुजारी को उस झूठ के अपराध में श्राप मिला था जिससे उसे कोढ़ी हो गया था। लोग उसे दूर से देखते थे और उसकी परछाई से भी डरते थे। कुछ लोगों ने राजा को इस बारे में बताया और राजा ने पुजारी को मंदिर से निकाल दिया। इससे पुजारी की जिंदगी में एक बड़ा बदलाव आया और वह मंदिर के बाहर भिक्षा मांगने लगा।
कुछ दिनों बाद स्वर्गलोक से कुछ अप्सराएं मंदिर में पहुँचीं और पुजारी से मिलने के बाद उन्होंने उसकी दशा के बारे में पूछा। पुजारी ने उन्हें शिव-पार्वती के चौसर खेलने और पार्वतीजी के शाप देने की सारी कहानी सुनाई। उसके बाद अप्सराएं ने पुजारी से सोलह सोमवार का विधिवत व्रत रखने को कहा।
यहाँ सुनकर पूजारी ने अप्सराओं से पूजन करने की विधि पूछी।
16 सोमवार व्रत विधि
अप्सराओं ने बताया –
सोमवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर, स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र पहनकर, आधा सेर गेहूं का आटा लेकर उससे तीन अंग बनाना।
फिर घी का दीपक जलाकर गुड़, नैवेद्य, बेलपत्र, चंदन, अक्षत, फूल, जनेऊ का जोड़ा लेकर प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करना।
पूजा के बाद तीन अंगों में से एक अंग को भगवान शिव को अर्पण करके, एक आप ग्रहण करना। शेष दो अंगों को भगवान का प्रसाद मानकर वहाँ उपस्थित स्त्रियों, पुरुषों और बच्चों को बाँट देना।
इस तरह सोलह सोमवार तक यह व्रत करने के बाद, सत्रहवें सोमवार को एक पाव आटे की बाटी बनाकर, उसमें घी और गुड़ मिलाकर चूरमा बनाना। फिर भगवान शिव को भोग लगाकर वहाँ उपस्थित स्त्रियों, पुरुषों और बच्चों को प्रसाद बाँट देना।
इस तरह सोलह सोमवार व्रत करने और व्रतकथा सुनने से भगवान शिव आपके समस्त मनोकामनाओं को पूरा करेंगे| इतना कहकर अप्सराएं स्वर्गलोक को चली गईं|
पुजारी ने अप्सराओं के कथनानुसार सोलह सोमवार का व्रत रखा था। फलस्वरूप भगवान शिव ने उसकी उपासना से खुश होकर उसका कोढ़ नष्ट कर दिया। अगले ही दिन राजा ने उसे मंदिर का पुजारी बना दिया।
अब वह मंदिर में रोज भगवान शिव की पूजा करता था और जीवन व्यतीत करता था। कुछ दिनों बाद भगवान शिव और पार्वती ने उस मंदिर में अपनी यात्रा की और स्वस्थ पुजारी को देखकर पार्वती ने उससे उसके रोगमुक्त होने का कारण पूछा।
फिर पुजारी ने उन्हें खुशी से सोलह सोमवार का व्रत रखने की सारी कथा सुनाई। और अपनी भक्ति और श्रद्धा से भगवान शिव की पूजा करने से उसका रोग ठीक हो गया था।
पार्वती जी ने व्रत की बात सुनते ही खुश हो गईं। उन्होंने पूजारी से व्रत की विधि पूछी और फिर स्वयं सोलह सोमवार का व्रत शुरू कर दिया।
उन दिनों पार्वती जी बहुत चिंतित रहती थीं क्योंकि उनके पुत्र कार्तिकेय नाराज होकर दूर चले गए थे।। वे उसे लौटाने के बहुत से उपाय कर रही थीं, लेकिन कुछ फल नहीं मिल रहा था। सोलह सोमवार के व्रत के दौरान पार्वती जी ने भगवान शिव से कार्तिकेय को वापस लौटाने की कामना की। व्रत के तीसरे दिन कार्तिकेय अचानक लौट आए और पार्वती जी बेहद खुश थीं।
कार्तिकेय ने पूछा, “हे माता, आपने मुझे लौटाने के लिए कौन सा उपाय किया था? मेरा क्रोध नष्ट हो गया और मैं वापस लौट आया।”
तब पार्वती जी ने कार्तिकेय को सोलह सोमवार के व्रत की कथा सुनाई।
कार्तिकेय को उसके ब्राह्मण मित्र ब्रह्मदत्त की याद बहुत रुलाती थी जब वो परदेस चले गए थे। वापस आने की इच्छा से कार्तिकेय ने सोलह सोमवार का व्रत रखा जिसमें उन्होंने ब्रह्मदत्त के लौटने की कामना की।
कुछ दिनों बाद मित्र लौट आया और अपने मित्र से पूछा कि उन्होंने इसके लिए कौन सा उपाय किया। कार्तिकेय ने अपने मित्र को सोलह सोमवार के व्रत की कथा-विधि सुनाई। ब्राह्मण मित्र व्रत के बारे में सुनकर बहुत खुश हुआ और उसने भी व्रत किया।
ब्रह्मदत्त सोलह सोमवार व्रत के बाद विदेश यात्रा पर निकल गए। उनकी यात्रा उन्हें राजा हर्षवर्धन के दरबार तक पहुँचाई। वहां राजकुमारी गुंजन का स्वयंवर था जिसमें राजा ने प्रतिज्ञा की थी कि एक हथिनी जिस शख्स के गले में यह माला डालेगी, उससे ही वह उसकी पुत्री का विवाह करेंगे।
ब्राह्मण भी उत्सुकता से महल में चला गया। वहाँ कई राज्यों के राजकुमार बैठे थे। तभी वहाँ एक सजी-धजी हथिनी सूँड में जयमाला लेकर आई। हथिनी ने ब्राह्मण के गले में जयमाला डाल दी। इस पर, राजकुमारी का विवाह ब्राह्मण से हो गया।
ब्राह्मण की पत्नी ने उससे पूछा कि हथिनी ने राजकुमारों को छोड़कर आपके गले में जयमाला क्यों डाली?
एक दिन ब्राह्मण की पत्नी ने पूछा – ब्राह्मण ने सोलह सोमवार व्रत के महत्व के बारे में बताया और उन्होंने इस व्रत को करने का निर्णय लिया। भगवान शिव की अनुकम्पा से उनकी पत्नी ने एक सुंदर, सुशील और स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम गोपाल रखा गया।
जब पुत्र गोपाल बड़ा हुआ तो एक दिन उसने मां से पूछा कि उसने तो उनके ही घर में जन्म लिया है, फिर इसकी वजह क्या है?
माता गुंजन ने उसे सोलह सोमवार के व्रत के बारे में बताया। इस व्रत का महत्व जानकर, गोपाल ने भी इसे मानने का संकल्प लिया।
सोलह वर्ष के होने पर, उसने राज्य पाने की इच्छा से सोलह सोमवार का विधिवत व्रत किया। व्रत समाप्त होने के बाद, गोपाल नजदीकी नगर में घूमने गया।
वहां उसे वृद्ध राजा ने पसंद किया और अपनी पुत्री राजकुमारी मंगला को उससे विवाह कर दिया। सोलह सोमवार के व्रत करने से गोपाल महल में पहुंचकर खुशी से रहने लगा।
दो वर्षों के अंतराल के बाद राजा का निधन हो गया था और उसके बाद नगर का राज्य उसके समय के विधानों के अनुसार उसके वंशजों में से किसी एक को सौंप दिया जाना था। लेकिन उस समय नगर के लोगों के बीच एक लोकप्रिय विचार प्रचलित था – सोलह सोमवार व्रत करने वाला व्यक्ति नगर का राजा बन सकता है। इस विश्वास के साथ, गोपाल ने सोलह सोमवार व्रत किया और वह नगर का नया राजा बन गया।
राजा बनने के बाद भी, गोपाल ने समय-समय पर सोलह सोमवार व्रत करते रहे। एक बार व्रत के समापन पर, सत्रहवें सोमवार को, उन्होंने अपनी पत्नी मंगला को सारी व्रत सामग्री लेकर समीप के शिव मंदिर में भेजने के लिए कहा।
परंतु, गोपाल की पत्नी ने अपने पति के आदेश का उल्लंघन करते हुए सेवकों को मंदिर में सामग्री भेजने का आदेश दिया। वह खुद मंदिर नहीं गई। जब राजा ने भगवान शिव की पूजा पूरी की तो
आकाशवाणी सुनाई दी- ‘हे राजन! तेरी रानी ने सोलह सोमवार व्रत का अनादर किया है। इसलिए रानी को महल से निकाल दें, वरना तुम्हारा सम्पूर्ण धन-दौलत नष्ट हो जाएगा।’
आकाशवाणी के सुनकर राजा ने तत्काल महल में जाकर अपने सैनिकों को आदेश दिया कि रानी को दूर के किसी नगर में छोड़ दें। सैनिकों ने राजा की आज्ञा का पालन करते हुए रानी को उसी समय घर से निकाल दिया।
रानी भूख-प्यास से पीड़ित उस नगर में भटकती रही। वहाँ उसे एक बूढ़ी महिला मिली, जो सूत काट रही थी। वह बूढ़ी महिला सूत काटते-काटते बाजार में बेचने जा रही थी, लेकिन सूत उससे उठने के लिए तैयार नहीं था। बूढ़ी महिला ने रानी से कहा, ‘बेटी, अगर तुम मेरी मदद करोगी तो मैं तुम्हें धन दूंगी। कृपया मेरे सूत को बाजार तक पहुंचा दो।’
रानी ने बुढ़िया की बात मान ली, पर जैसे ही रानी ने सूत की गठरी को हाथ लगाया, तभी जोर की आंधी चली और गठरी खुल जाने से सारा सूत आंधी में उड़ गया। बुढ़िया ने उसे फटकारकर भागा दिया।
रानी चलते-चलते नगर में एक तेली के घर पहुंची। उस तेली ने तरस खाकर रानी को घर में रहने के लिए कह दिया लेकिन तभी भगवान शिव के प्रकोप से तेली के तेल से भरे मटके एक-एक करके फूटने लगे। तेली ने भी भागा दिया।
भूखी-प्यास से व्याकुल रानी वहां से आगे की ओर चल पड़ी। रानी ने एक नदी पर जल पीकर अपनी प्यास शांत करनी चाही तो नदी का जल उसके स्पर्श से सूख गया। अपने भाग्य को कोसती हुई रानी आगे चल दी।
चलते-चलते रानी एक जंगल में पहुंची। उस जंगल में एक तालाब था। उसमें निर्मल जल भरा हुआ था। निर्मल जल देखकर रानी की प्यास तेज हो गई। जल पीने के लगी रानी ने तालाब की सीढ़ियां उतरकर जैसे ही जल को स्पर्श किया, उस समय उस जल में बहुत सारे कीड़े उत्पन्न हो गए थे। रानी दुखी होकर उस गंदे जल को पीकर अपनी प्यास शांत कर ली।
रानी ने एक पेड़ की छाया में बैठकर थोड़ी देर आराम करने की कोशिश की, लेकिन उस पेड़ के पत्ते पल भर में सूख कर बिखर गए। तब वह दूसरे पेड़ के नीचे जाकर बैठी, जिसके नीचे बैठते ही वह सुकून पायी।
वन और सरोवर की इस दुखद दृश्य को देखकर वहां के ग्वाले हैरान थे। उन्होंने रानी को समीप के मंदिर में पुजारी जी के पास ले गए। रानी के चेहरे को देखकर ही पुजारी जान गए कि रानी किसी बड़े घर की होगी। उसका भाग्य उसे ऐसी स्थिति में डाल दिया है कि वह लगातार भटक रही है।
पुजारी ने रानी से कहा कि “ओ पुत्री! आप चिंता न करें। इस मंदिर में रहो। कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा।” पुजारी की बातों से रानी बहुत संतुष्ट हुई। रानी मंदिर में रहने लगी लेकिन उन्हें खाना बनाने में समस्या होती थी। सब्जियां जल जातीं, आटे में कीट लग जाते थे और जल से बदबू आने लगती थी।
पुजारी भी रानी के दुर्भाग्य से बहुत चिंतित होते हुए बोले कि “ओ पुत्री! तुमसे अनुचित काम हुआ होगा जिससे देवताओं को नाराजगी हुई होगी। देवताओं की नाराजगी के कारण ही तुम्हारी यह दशा हुई है।” इसके बाद रानी ने अपने पति के आदेश पर मंदिर में नहीं जाकर शिव की पूजा नहीं की।
पुजारी ने कहा – “अब आपको कोई चिंता नहीं करनी चाहिए। कल सोमवार है और आपको सोलह सोमवार का व्रत करना चाहिए। भगवान शिव आपके दोषों को क्षमा करेंगे।”
रानी ने पुजारी की बात सुनकर सोलह सोमवार का व्रत शुरू कर दिया। उन्होंने सोमवार के व्रत में शिव की पूजा-अर्चना की और व्रतकथा सुनी। जब रानी ने सत्रहवें सोमवार का व्रत समाप्त किया तो राजा को उनकी याद आई। राजा ने अपने सैनिकों को रानी को ढूँढने के लिए भेजा, लेकिन पुजारी ने सैनिकों से मना कर दिया। सैनिक निराश होकर लौट गए और राजा को सब कुछ बताया।
राजा ने स्वयं पुजारी के पास मंदिर में जाकर रानी को महल से निकालने के लिए माफी माँगी। पुजारी ने राजा से कहा, “यह सब भगवान शिव के क्रोध के कारण हुआ है।” उसके बाद रानी को विदा कर दिया गया।
राजा और रानी महल में आए और वहाँ बहुत उल्लास मनाया गया। समस्त नगर को सजाया गया। राजा ने ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र और धन का दान दिया और निर्धनों को वस्त्र वितरित किए गए। रानी ने सोलह सोमवार का व्रत करते हुए महल में आनंदपूर्वक रहना शुरू किया। भगवान शिव की अनुकंपा से उसके जीवन में सुख का अमृत भर गया।
इस प्रकार, सोलह सोमवार के व्रत और कथा सुनने से हमारी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और हम जीवन में किसी भी तरह की कमी से बचे रहते हैं। इस व्रत के अनुष्ठान के द्वारा, हम स्वयं को उन्नत बनाते हैं और मोक्ष को प्राप्त करते हैं। यह सभी लोगों के लिए अनुकूल होता है और इसका अनुष्ठान हमें संतुष्टि और आनंद प्रदान करता है।
सोलह सोमवार व्रत कथा से जुड़े प्रश्न
Q1: 16 सोमवार व्रत के फायदे?
A: सोलह सोमवार का व्रत रखने से शिव जी खुश होते हैं और उनकी कृपा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसके अलावा सोमवार के व्रत के अन्य फायदे निम्नलिखित हैं:
– शिव भक्ति में वृद्धि: सोलह सोमवार का व्रत रखने से शिव जी की भक्ति में वृद्धि होती है और इससे मन की शांति भी मिलती है।
– दुःखों से मुक्ति: सोलह सोमवार के व्रत से दुःखों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख और शांति का आभास होता है।
– सफलता के लिए शुभ होता है: सोलह सोमवार के व्रत से सफलता मिलती है और इससे व्यक्ति को नए अवसर मिलते हैं।
– दोषों से मुक्ति: सोलह सोमवार का व्रत रखने से मनुष्य के दोष दूर होते हैं और उसकी सारी कल्याणकारी क्रियाएं फलित होती हैं।
– अच्छी सेहत: सोलह सोमवार के व्रत से व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक सेहत बनी रहती है।
– पापों से मुक्ति: सोलह सोमवार के व्रत से मनुष्य के पाप दूर होते हैं|
Q2: 16 सोमवार व्रत में क्या खाना चाहिए?
A: सोलह सोमवार व्रत के दौरान आप फलाहार खाने का विकल्प अपना सकते हैं। इस व्रत में सेब, केला, अनार और संतरे खा सकते हैं। इस व्रत के दिनों में अन्न नहीं खाया जाता। हालांकि, कुछ लोग इस व्रत में दिनभर फलाहार नहीं करते, सिर्फ शाम को एक फलाहार का सेवन करते हैं।
Pingback: सोलह सोमवार व्रत कथा बुक डाउनलोड